मोहब्बत मुस्कराकर जब शिकायत भूल जाती है
वहीं मौका परस्ती तो शहादत भूल जाती है।
वहीं मौका परस्ती तो शहादत भूल जाती है।
समय के सामने इंसान जब लाचार होता है
लगाकर रूख वादों के सियासत भूल जाती है।
लगाकर रूख वादों के सियासत भूल जाती है।
बड़ी उम्मीद से आती है पूजाघर में ये दुनिया
दुआएं मांग लेती है इबादत भूल जाती है।
दुआएं मांग लेती है इबादत भूल जाती है।
जमी पर चार पैरों को टिकाकर आसमां छूती
मगर अभिमान में धरती इमारत भूल जाती है।
मगर अभिमान में धरती इमारत भूल जाती है।
नई पीढ़ी नए सपने संजोती आँख में लेकिन
नयेपन में बुजुर्गों की हिदायत भूल जाती है।
नयेपन में बुजुर्गों की हिदायत भूल जाती है।
मुसलसल मौन साधे नींव की ईंटों की कुर्बानी
हवा से बात करती है तो फिर छत भूल जाती है।
हवा से बात करती है तो फिर छत भूल जाती है।
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