*ग्रंथियाँ और उनके प्रकार*
ग्रंथियाँ ऐसे ऊतक, अंग या कोशिका होती हैं जिनसे निकलने वाला स्त्राव शरीर में विभिन्न कार्यों के लिए प्रयोग किया जाता है। ग्रंथियाँ प्रायः एपिथीलियम ऊतक के वलन से बनी होती हैं। ये शरीर के अन्दर अंगो में या शरीर में मिलने वाली ग्रंथियाँ प्रायः तीन प्रकार की होती हैं-
बहिः स्त्रावी ग्रंथियाँ
इन ग्रंथियों में सँकरी नलिकाएँ एवं वाहिकाएँ होती हैं, जिनके द्वारा इनमें बनने वाले स्त्रावित पदार्थ शरीर के किसी निश्चित अंग या शरीर की सतह पर पहुँचाए जाते हैं। ऐसी ग्रंथियों को बहिःस्त्रावी ग्रंथियाँ या नलिकायुक्त या प्रणाल ग्रंथियाँ।
उदाहरण
यकृत, स्तानियों की स्वेद ग्रंथियाँ, तैल ग्रंथियाँ, लार ग्रंथियाँ, अश्रु ग्रंथियाँ, दुग्ध ग्रंथियाँ आदि।
अंतः स्त्रावी ग्रंथियाँ
इन ग्रंथियों में स्त्रावित पदार्थ के परिवहन के लिए नलिकाओं या वाहिकाओं का अभाव होता है। अतः इनके द्वारा स्त्रावित पदार्थ, ऊतक द्रव्य के माध्यम से, सीधे रुधिर में मुक्त होकर शरीर के विभिन्न अंगों में पहुँच जाता है। नलिका न होने के कारण इन ग्रंथियों को नलिकाविहीन या अप्रणाल ग्रंथियाँ भी कहते हैं। इन ग्रंथियों के स्त्रावों को हार्मोन कहते हैं। ऐसी ग्रंथियाँ में रुधिर वाहिनियाँ अपेक्षाकृत अधिक होती हैं।
उदाहरण
पीयूष ग्रंथि, थाइरॉइड ग्रंथि, अधिवृक्क ग्रंथि आदि।
मिश्रित ग्रंथियाँ
ये मुख्यतः वाहिकायुक्त होती हैं किन्तु इनके अन्दर कुछ विशेष कोशिकाएँ समूह में पाई जाती हैं जो अंतः स्त्रावी ग्रंथियों का कार्य करती हैं। इनसे स्त्रावित हार्मोन सीधे ही रुधिर में युक्त हो जाते हैं।
उदाहरण
अग्न्याशय- इनका बहिःस्त्रावी भाग अग्न्याशयिक रस उत्पन्न करता है और अंतः स्त्रावी भाग-लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँइंसुलिन तथा ग्लूकागोन नामक हार्मोन का स्त्रावित करती हैं जो सीधे रुधिर में मुक्त हो जाते हैं।
ग्रंथियाँ ऐसे ऊतक, अंग या कोशिका होती हैं जिनसे निकलने वाला स्त्राव शरीर में विभिन्न कार्यों के लिए प्रयोग किया जाता है। ग्रंथियाँ प्रायः एपिथीलियम ऊतक के वलन से बनी होती हैं। ये शरीर के अन्दर अंगो में या शरीर में मिलने वाली ग्रंथियाँ प्रायः तीन प्रकार की होती हैं-
बहिः स्त्रावी ग्रंथियाँ
इन ग्रंथियों में सँकरी नलिकाएँ एवं वाहिकाएँ होती हैं, जिनके द्वारा इनमें बनने वाले स्त्रावित पदार्थ शरीर के किसी निश्चित अंग या शरीर की सतह पर पहुँचाए जाते हैं। ऐसी ग्रंथियों को बहिःस्त्रावी ग्रंथियाँ या नलिकायुक्त या प्रणाल ग्रंथियाँ।
उदाहरण
यकृत, स्तानियों की स्वेद ग्रंथियाँ, तैल ग्रंथियाँ, लार ग्रंथियाँ, अश्रु ग्रंथियाँ, दुग्ध ग्रंथियाँ आदि।
अंतः स्त्रावी ग्रंथियाँ
इन ग्रंथियों में स्त्रावित पदार्थ के परिवहन के लिए नलिकाओं या वाहिकाओं का अभाव होता है। अतः इनके द्वारा स्त्रावित पदार्थ, ऊतक द्रव्य के माध्यम से, सीधे रुधिर में मुक्त होकर शरीर के विभिन्न अंगों में पहुँच जाता है। नलिका न होने के कारण इन ग्रंथियों को नलिकाविहीन या अप्रणाल ग्रंथियाँ भी कहते हैं। इन ग्रंथियों के स्त्रावों को हार्मोन कहते हैं। ऐसी ग्रंथियाँ में रुधिर वाहिनियाँ अपेक्षाकृत अधिक होती हैं।
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पीयूष ग्रंथि, थाइरॉइड ग्रंथि, अधिवृक्क ग्रंथि आदि।
मिश्रित ग्रंथियाँ
ये मुख्यतः वाहिकायुक्त होती हैं किन्तु इनके अन्दर कुछ विशेष कोशिकाएँ समूह में पाई जाती हैं जो अंतः स्त्रावी ग्रंथियों का कार्य करती हैं। इनसे स्त्रावित हार्मोन सीधे ही रुधिर में युक्त हो जाते हैं।
उदाहरण
अग्न्याशय- इनका बहिःस्त्रावी भाग अग्न्याशयिक रस उत्पन्न करता है और अंतः स्त्रावी भाग-लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँइंसुलिन तथा ग्लूकागोन नामक हार्मोन का स्त्रावित करती हैं जो सीधे रुधिर में मुक्त हो जाते हैं।
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